Tuesday, October 20, 2009

की प्रगतिशील तखने हम छी?

की प्रगतिशील तखने हम छी?
जँ आन देश केर भाषा केर हम गर्वित भ' क' बाजी
आ अप्पन भाषा केर बिसरी जाई .......................

की प्रगतिशील तखने हम छी?
जँ कर्म कुकर्मक भेद मिटा कत्तौ कखनो हम किछु क' ली
आ अप्पन सदगुण बिसरी जाई...................................

की प्रगतिशील तखने हम छी?
जँ श्रेष्ठहुं के आदर नहि दी
आ संस्कार हम बिसरि जाई..........................................

की प्रगतिशील तखने हम छी?
जँ कपड़ा लत्ता फोलि फालि नँगटे कत्तहु बुलैत रही
आ संस्कृति अप्पन बिसरि जाई............................

जागू जागू हे आर्य लोकनि! एखनो समय अछि बचयबाक
एहि संस्कृति कें,एहि सदगुण के, एहि संस्कार ओ भाषा कें
जकरा बुझय लय अपनयबा लय लोक अबै छथि दूरो सँ
तकरे कोना हम बिसरि जाऊ

नहि ई नहि होयत से प्रण ली सब अपना मन में
ई प्रगतिशीलता जँ अपना देशक अस्तित्वे मिटा देत
तँ नहि होयब हम प्रगतिशील
बस होयब सुच्चा राष्ट्रभक्त आ कर्मठ अपना जीवन में
तँ प्रगतिशील मानय पडतै
सब देशहि कें विश्वक समक्ष

गीत एक गायब ओहि दिन हम
प्रगतिशील तखने हम छी जँ
अपन भाषा ध्यान रहय, अप्पन सदगुण कें नहि बिसरी
संस्कार सेहो बस ध्यान रहय
आ अप्पन संस्कृति लेल मन में सब सँ पहिने स्थान रहय

प्रगतिशील तखने हम छी..........................
प्रगतिशील तखने हम छी..........................

दुविधा

हम चेतन छी की नेने छी ?
किछु गुण चेतन केर पौने छी
आ किछु में एखनो नेने छी
हम चेतन छी की नेने छी..............


ई बयस होइछ सबहिक जीवन केर से पड़ाव
जे सबठां दू टा बाट एक टा नीक तथा दोसर ख़राब
ई प्रश्न सदा मन में रहैछ जे चयन ककर हम कयने छी?
हम चेतन छी की नेने छी..............


ई बयस बहुत सुंदर कहबा लेल होइत अछि
किछु बात चेतनो के बुझी आ नेनपन सेहो रहैत अछि
पर अन्तःपीडा अपन लोक अपने बूझय
ने चेतन आ ने नेने में स्थान अपन हम पौने छी
हम चेतन छी की नेने छी..............


चेतन-नेना, नेना-चेतन केर प्रबल द्वंद
दिन राति किंतु बीतल जाइछ गति मंद मंद
बस एक प्रश्न अपने सब स' पूछय चाही
जे अपनहु सब की एहिना बयस बितौने छी
हम चेतन छी की नेने छी..............

Monday, October 12, 2009

परिवर्तन

आब समूचा दुनिया ई पहिने सँ अछि आगाँ बढि गेल

आई फेर मुनचुन बाबा केर शुरू भेलनि भाषण केर रेल


कहलनि हम गामे सँ दरिभंगा पैरे चलि आबी

भिनसर में सबसँ पहिने प्राती गबैत छलथिन बाबी

आब लोक अछि गुडुकि रहल से सबटा अछि चक्का केर खेल

आ एहि सीडी कैसैट युग में किए प्रतीक्षा भिनसर लेल

आब समूचा दुनिया ई.................................................


पहिने लालटेन वा डिबिये सँ चलि जाइत छल सब काज

पहिने लिखल जाइत छल चिट्ठी से पहुंचै छल मासों बाद

आब मरकरी केर इजोत सँ घर आँगन अछि जगमग भेल

आ एहि टेलीफोनिक युग में अमरीको कोनटे लग भेल

आब समूचा दुनिया ई.................................................


पहिने दीपावली राति में छल लगैत दीपेक कतार

आ फगुआ दिन भीजि जाइत छल रंगहि सँ सब यार भजार

आब दीप केर जगह समूचा झालरि और फटक्का लेल

आ एहि इंटरनेटी युग में खेला लेत फगुआ ईमेल

आब समूचा दुनिया ई.................................................

Saturday, October 10, 2009

हमर दादाजी

सन् पचीस में चंद्रोदय भेल संघक उदयक संगे
जाहि समय में होइत छल हल्ला फसाद आ दंगे


पिता हिनक तेजस्वी पंडित , विद्या विनय सकल गुण मंडित
संस्कृत विषयक रहि आचार्य , पुनि बनलाह प्रधानाचार्य
दूर दूर तक घूमय गेला हिनका संगे संगे
सन् पचीस में........................................

ज्येष्ठक गुण सहजे अपनौलनि , अपनों प्रतिभा मांजि बनौलनि
सभा मंच पर हंसा हंसा क' , हास्य कविक ई पदवी पौलनि
यात्री जी भागिन सुभद्र झा मामा दुहु बेढंगे
सन् पचीस में........................................

बहुतो पुरस्कार छनि भेटल , अपन लिखल पोथी छनि गेंटल
भरि जीवन अध्यापन कयलनि , पूज्य पिता केर रस्ता धयलनि
सरस मधुर वाणी सं' सबकें रंगलनि अपने रंगे
सन् पचीस में........................................

करथि दुलार तते दादाजी , दुनू भाय के अछि आजादी
आशीर्वाद हिनक ज' पायब , सब उपदेश हिनक अपनायब
हम आदित्य विभूति पौत्र त' थिकियनि हिनकर अंगे
सन् पचीस में........................................