Friday, November 20, 2009

व्यथा

हम कोना क' हँसी हम ई बाजी कोना
हमर नोरो सुखा गेल कानी कोना ?

हमरा दिन केर इजोतो अन्हारे लगय
हम जे सोनो उठाबी त' माटिए बनय
हमहूँ नचितहुँ कने से जखन मोन हो
हमर घुघरू हेड़ा गेल नाची कोना?
हम कोना........................................

माछ दहियो सँ जतरा सुजतरा न हो

हम त' डेगो उठाबी जे खतरा न हो

हमहूँ गबितहुं कने से होअय लालसा

कंठ स्वरहीन भ' गेल गाबी कोना ?

हम कोना...................................


फूल केर बीज रोपी त' काँटे उगय

बात केहनो मधुर जग कें कड़ुए लगय

हमहूँ छुबितहुं गगन होय इच्छा प्रबल

छत सेहो नहि बचल नभ कें छूबी कोना?

हम कोना............................................



हमर घूँघरू भेटत मन में अछि आस से

कंठ में स्वर घुरत फेर विश्वास से

ओना छथिहो विधाता सेहो बाम छथि

हम अपन याचना ल' क' पहुँची कोना

हम कोना.......................................

Tuesday, November 17, 2009

कोरोना

छल मनुक्ख आतुर लड़बा लेल प्रकृति संग कोनहु रन  मे
सबटा काबिलती केर दाबी ध्वस्त भेल एक्कहि छन मे

सगर विश्व में पसरि गेल अछि रोग आसुरी आइ तेहन
अपनहि शहर बजार लगै छल जेना कोनो हो निर्जन बन
कोरोना केर भय सं दुनिया सुटकि गेल छल आँगन मे
सबटा काबिलती केर दाबी....

लोक डाउन में होइत छल जे चिड़ै चुनमुनी रहितहुँ हम
पाँखि अपन पूरा पसारि आकाश भ्रमण कय सकितहुँ हम
आब सोचै छी कतेक कष्ट पिजड़ाक चिड़ै कें हेतै मन मे
सबटा काबिलती केर दाबी......

जँ भेटितथि भगवान पुछितियनि कोन कर्म के सजा देलहुँ
की बिगाड़ने छलहुँ अहँक जे एहि जाल में फसा देलहुँ
जानी नहि की की देखबा लेल और बचल अछि जीवन मे
सबटा काबिलती केर दाबी....

Friday, November 13, 2009

अंतर्द्वंद

हम जाय रहल छी कतय सैह नहि बूझि रहल छी
तें अपने अन्तःमन सँ सदिखन जूझि रहल छी

अपने विचार अगले क्षण मिथ्या बुझा रहल अछि
तें हमरा आगाँ पाछाँ नहि सुझा रहल अछि
बैसल छी सोचबा लेल किच्छु नहि फुरा रहल अछि
सबटा विचार मनहिक भीतर घुरघुरा रहल अछि
हम किदन कहाँ छी बाजि रहल से बूझि रहल छी
अपने अन्तःमन................................................

प्रकृति संग मनमानी देखि अचंभित छी हम
प्रकृतिक पलट प्रहार सोचि बड विचलित छी हम
एकसर की क' सकबै तें चुपचाप रहै छी
मानवकृत अत्याचारक सब अभिशाप सहै छी
क्यौ ने सुननिहार अछि व्यर्थे भूकि रहल छी
अपने अन्तःमन............................................

लोकक देखि तमाशा मन अकबका रहल अछि
सम्बंधोक विचार न तें सकपका रहल अछि
नैतिकता केर ह्रास देखि छटपटा रहल अछि
आगाँ केर परिणाम सोचि कपकपा रहल अछि
हम बताह छी वा ओ से नहि बूझि रहल छी
अपने अन्तःमन..........................................

Sunday, November 8, 2009

कविक लालसा

हमर कविताक पांती पहिल थीक
ज' कही नीक लागल त' आगू बढ़ी
नहि त' छोरब अपन जिद ने कविता लिखब
मुदा चिंता तखन अछि जे की हम करब

किछु काजो करबा में त' नहिए सकी
त सोचलहुँ जे बैसि थोड़े कविते लिखी
कविता लिखब आब भारी त खेल नहि
हमरा कहियो बेसी दिककत त भेल नहि
किछुओ हो दस बीस पचास शब्द ठूसल हो
कविताक अर्थ भले कविता स रूसल हो

हे कविता कतेक लिखब चालीस पचास
आ पृष्ठों बड बेसी त सयक आसपास
आ तै पर ज' आमुख विधायक जी लीखि देता
हमरा प्रशंसा में दू आखर टीपि देता
जे सद्यः सरस्वतीक जिह्वा पर बास छन्हि
मैथिल समाज केर हिनका स आस छन्हि

फेर लक्ष्मीओ के अयबा में कोनो टा भाँगट नहि
जे ओ पढ़त से त' एक्कहि टा मांगत नहि
हे पॉँच सय नहि चारिए सय प्रति जँ बिका जाएत
एहि अदना सन कवि केर त' जीवन उद्धार हैत
टाका जुनि पुछू पाग डोपटा सम्मान भेटत
कवि लोकनिक पांती में आगाँ ई नाम भेटत

तं आज्ञा भेटल हमरा आगाँ बढ़बाक लेल
पब्लिशर तैयार अछि पोथी छपबाक लेल
पोथी केर आउटलुक डिज़ाइनो कमाल अछि
पब्लिशर मुदा एहि चिंते बेहाल अछि

जे लोके नै कीनत त छापियो कs हैत की
घासे ज मित्र तखन घोड़ा फेर खैत की
तें जेबी में टाका ज अछि त तैयार रहू
नीक एक पोथी पढबा केर नियार करू
पोथी सजिल्द कूट लागल नफीस रहत
आ मूल्य सेहो बेसी नहीं चारि सय पचीस रहत