Saturday, October 23, 2010

कि आब हम सुरक्षित छी?

एक दिन हम बाट भटकि पहुंची गेलहुं जंगल में
छोट, पैघ, ठुठ्ठ, लदल सब तरहक गाछ छल 
सनसनाइत हवा संगे सरसराइत पात छल 
चिडै सबहक चीं चीं केर मद्धिम आवाज़ सेहो

हर्ष संगहि विस्मय भेल प्रकृतिक सुन्दरता पर
आह! कतेक सुन्दर अछि अंतर्मन बाजि उठल
मुग्ध भेल, मग्न भेल, अपलक ओहि दृश्य केर रहलहुं तकैत हम
कि एकरो मेटा देतै ?
क्रुद्ध भेल मन लोकक मानसिक दुर्बलता पर

कोना क्षणिक सुख भरि लेल
नष्ट-भ्रष्ट क दैत अछि यत्न स बनाओल गेल ईश्वर केर चित्रकला

कोना अपन सोफा,पलंग,आलमीरा लेल     
छिन्न-भिन्न क दैत अछि, ईश्वर प्रदत्त ओहि औषधि संसार कें

कोना अपन स्वार्थ सिद्धि कहुना करबाक लेल
आन कोनो प्राणी केर जीबा केर
अधिकारो छीन लेल जाइत छैक

ई सब विचार सोचि मन छल अशांत भेल
बैसि गेलहुं माथ टिका गाछक वात्सल्य में,
ताबत धरि सब अरण्यवासी कें ज्ञात भेलनि,
जे जंगल केर बाहर सँ आयल
दू पैर बला फेरो अछि पशु कोनो

घेरा गेलहुं हम चहुँओर जीव-जंतु सँ
किछु समयावधि बाद अपन आंखि जखन फोलल हम
देखल जे दृश्य प्राण उपरे अटकि गेल
जतेक क्रोध,चिंता छल भीतरे सटकि  गेल
हजारो प्रकारक छल, संख्या त' लाख में
हमर प्राण अटकल छल यमराजक हाथ में

प्रानघ्न पशु सब छल अगिले कतार में
प्राणक एक डोरी छल भगवानो हाथ में
तें कबुला-पाती केर सूची तैयार कयलहु
डरें छल आवाज़ बंद तखनो चीत्कार कयलहु

चौकी सँ खसि पड़लहूँ, धम्म ड़' आवाज़ भेल
आंखि हमर फ़ूजि गेल, नींद सेहो टूटि गेल,
फक्क द' क' सांस छुटल
आब हम सुरक्षित छी
मन में उसास भेल 
मात्र एक स्वप्न छल  ई से तखन ज्ञात भेल

मुदा एक प्रश्न उठल अगिले क्षण मन में
कि आब हम सुरक्षित छी ?
कि सत्ते सुरक्षित छी?