Wednesday, November 9, 2011

दुनियादारी नहि बूझि सकल ........

एक दिन हमरा छल भेट भेल
संसारिक आपाधापी मे रहितहु
ओहि स निश्चिंत,
सुगमता स जीवनपथ पर चलइत
अजगुत स्वभाव केर धनी
एकटा लोक तेहन
जकरा देखितहि ई भेल
कल्पना यैह रहल हेतनि भगवानक
मानव रचनाकाल 

निश्छल,पवित्र छल गाय जेकाँ
कोमल हृदयी छल माय जेकाँ 
ओ निर्मल छल निर्झर जल सन 
व्यक्तित्व समूचा दर्पण सन 

ओ शांत सुदूर देहात जेकाँ 
उपियोगी केरा पात जेकाँ 
ओ पावन चारू धाम जेकाँ 
आ मीठ स्वभावे आम जेकाँ 

नहि ओझरायल जट्टा सन छल 
नहि मधुमाछिक छत्ता सन छल 
नहि धूर्ते छल सियार जेकाँ 
नहि निष्ठुर पूषक जार जेकाँ 

अपना कें सधने, योगी छल 
दुनियाक नजरि में रोगी छल 
सदिखन सबठा सत्कार करय
निस्वार्थ सभक उपकार करय  

बस एक्कहि टा छल एब मुदा,
नहि अर्थ प्रतिष्ठा लूझि सकल 
दुनियादारी नहि बूझि सकल