Friday, April 19, 2013

ग़ज़ल (जकरा जतबा लहि जाइत अछि )

22 22 22 22
किछुओ संगे नहि जाइत अछि
एहीठां सब रहि जाइत अछि

हम कतबो किछु लीखी तैयो
कागत सादे रहि जाइत अछि

जतबा जे किछु सुख अरजल से
नोरे संग सब बहि जाइत अछि

कतबो पैघ महल हो एक दिन
समयक आगाँ ढहि जाइत अछि

कतबो सुमिरन करी, प्रार्थना
आब ओतय धरि नहीं जाइत अछि

आई समय ओकरे होईत छै
जकरा जतबा लहि जाइत अछि


हम कि लिखू

कखनो क' हमरा नहीं फुराइत अछि
कि लिखू
लिखबा में कलम थरथराइत अछि
कि लिखू

हम लोकक झगड़ा दान लिखू
की हृदयक अपन बखान लिखू
वा अपना लोक कें आन लिखू
फूसिए ककरो गुणगान लिखू
हम कि लिखू

हम राजनीति कें भ्रष्ट लिखू
महगी स' जनता त्रश्त लिखू
फूसिए अपना के व्यस्त लिखू
वा सबहिक मन कें कष्ट लिखू
हम कि लिखू

हम प्रेम लिखू कि घृणा लिखू
सुख़-दुःख एक्कहि रंग कोना लिखू
फुसिए ककरा झुनझुना लिखू
अनका मन स' हम कोना लिखू
हम कि लिखू