Wednesday, December 2, 2009

हेरायल शैशव

होइछ इच्छा शिशुए रहितहुँ
देख' पड़ैत ने जाति-धर्म 
वा तथाकथित सामाजिक स्थान अपन 
हंसबा लेल आ कि कनबा लेल 
 हँसितहुं तखने जँ मन खुशी 
जँ मन दुखी तखने कनितहुं 
होइछ इच्छा.................................... 

होइछ इच्छा शिशुए रहितहुँ 
कर' पड़ैत ने छल कपट आ दुर्व्यवहार 
ई जिनगी कें जीबाक लेल 
वा पेट मात्र पोषबाक लेल 
पी लितहुँ माय केर दूध 
और आशीष संगे जीवित रहितहुँ 
होइछ इच्छा........................ 

होइछ इच्छा शिशुए रहितहुँ 
कर' पड़ैत ने मारि-पीट आपा-धापी 
एहि अर्थयुगक बनबाक लेल 
वा दलदल में धँसबाक लेल 
स्नेह वृष्टि में भीजि-तीति हम 
आनन्दक अनुभव करितहुं 
होइछ इच्छा................................. 

होइछ इच्छा शिशुए रहितहुँ 
देख' पड़ैत ने लुप्त होइत 
मानवता मानव केर मन सँ 
सुख-शान्ति सबहक घर आँगन सँ 
सब क्यौ शैशव सँ शिक्षा ल' 
निश्छल, निश्पापी बनि पबितहुँ 
होइछ इच्छा.................................

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