Saturday, December 8, 2018

प्रवासी

पेट जखन
भारी पड़य लगैत छैक
प्रेम पर
त' डेग स्वतः
निकलि जाइत छैक
दानाक ताक में

ट्रेन छोड़ैत चलि जाइत छैक
स्टेशन
आ छूटल चल जाइत अछि
अपन
माटि-पानि , गाछ-वृच्छ
घर-दुआरि

स्टेशन केर अंतिम छोर धरि आबि
ठमकि जाइत छथि
संगी-साथी
भाय-बहिन, माय-बाप
बाबा-बाबी
आ नुका लैत  छथि
अपन-अपन
नोरायल आँखि

संग में नेने चलि अबैत छी
मनक पौती में
ओरिआओल
स्मृति मात्र
जकरा देखि
नै जानि कतेक बेर
बीच ऑफिस में, कॉलेज में
लोक लाजक कारणे
पीबि लैत छी
अपनहि नोर

समय अपन चालि चलैत कहैत अछि
ई लिय' "शह"
आ अपना लोकनि
अपन-अपन "मात" बचयबाक
युक्ति सोचय में लागल रहैत छी
अनवरत