Sunday, April 25, 2010

गाछक व्यथा

हमर स्कूल सँ घरक बीच में,
बाट पर छल
एकटा खूब विशाल, फल सँ लदल
पात सँ सजल
गाछ...

जकरा छाहरि    में
हम सब सुस्ताइत छलहुँ
खेलाइत छलहुँ
आ डारि पर चढ़ी फल-फलहरी खाइत छलहुँ

मुदा समयक कुचक्र
ओकर पात कें खसा देलकई
फल केर बिला देलकई
ओतबे  नहि निर्दयी,
ओहि गाछ कें सुखा देलकई

आबो ओही बाटे हम सब चलैत छी
स्कूल जाइत छी आ फेरो घुरैत छी
आबो ओ गाछ हमरा सब दिस तकैत अछि    
ओही हुलसल दृष्टि संगे शोरो पाडैत अछि
मुदा,
आब हमही नहि कोनो बच्चा
ओकरा दिस तकितो नहि छी
आ खेलाइत-धूपाइत   
ओही बाट पर चलैत-फिरैत
ओहि गाछ सँ बहुत दूर चलि जाइत छी 
 
      

4 comments:

  1. ahanke du tin ta maithili kavita parhlaun. Gachak vyatha bad nik lagal. Hum apan mitra sabke seho dekhaliyain. Hunko sabke badhiya laglain.

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  2. ahan kavita padh ka puranka yaad taaza bha gayl...hum sab badal gayliye,,,muda kichhu chiz akhno oteye chhey

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  3. धन्यवाद अहाँ दुनू गोटे कें जे अपना समय में सँ किछु निकालि, हमर कविता पढलहु.

    मुकेश सर, ई सुनि हम आह्लादित छी जे अहीं के नहि अपितु अहाँ केर मित्र लोकनि कें सेहो हमर कविता नीक लगलनि.

    सुशांत, मनुष्यक एही प्रवृत्ति पर ई फुरल जे सबटा बदलि जाइत छैक आ अपन काज ख़त्म भ' गेला पर, आ ज' सामने बला लग आब ओ बात नहि रहि गेल त' हम ओकर कयल गेल उपकारो कें बिसरि जाइत छी

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