Friday, April 19, 2013

हम कि लिखू

कखनो क' हमरा नहीं फुराइत अछि
कि लिखू
लिखबा में कलम थरथराइत अछि
कि लिखू

हम लोकक झगड़ा दान लिखू
की हृदयक अपन बखान लिखू
वा अपना लोक कें आन लिखू
फूसिए ककरो गुणगान लिखू
हम कि लिखू

हम राजनीति कें भ्रष्ट लिखू
महगी स' जनता त्रश्त लिखू
फूसिए अपना के व्यस्त लिखू
वा सबहिक मन कें कष्ट लिखू
हम कि लिखू

हम प्रेम लिखू कि घृणा लिखू
सुख़-दुःख एक्कहि रंग कोना लिखू
फुसिए ककरा झुनझुना लिखू
अनका मन स' हम कोना लिखू
हम कि लिखू 

No comments:

Post a Comment