Saturday, October 12, 2013

बखरा अप्पन बाँटि लिय...

मन पड़ैत अछि, एक्कहि थारी में नेना में खयल करथि
हमरा अपने हाथ नहाबथि, अपने तखन नहायल करथि
जे कपड़ा-लत्ता तक में कहिओ नहीं कहलनि छाँटि लिय
से कहैत छथि आब भैयारी, बखरा अप्पन बाँटि लिय.

कथी- कथी के बखरा लगतै तकरो लिस्ट भेल तैयार
आँगन, बाड़ी, कोठली चौकी, सब बंटबाक भेलई नेयार
हम कहलियनि स्मृति सेहो आई धरिक सब छाँटि लिय
ओ कह्लनि जे आब भैयारी, बखरा अप्पन बाँटि लिय.

हम कहलियनि की बाँटब ई घास-फूस आ आक-धथुर
थोड़-बहुत होइते रहैत छै संबंधो में तीत मधुर
माय-बापक हम प्रेम कोना कS आधा आधा राखि लिय
ओ कह्लनि जे आब भैयारी, बखरा अप्पन बाँटि लिय.

सजल नेत्र जे माय-बापक छल कोना कS बंटितहुं अहीं कहू
एतबा दिनका प्रेम अहंक जे कोना कS बंटितहुं अहीं कहू
अपना पर अधिकार ने छीनू, हमरो सबटा राखि लिय
ओ कह्लनि जे आब भैयारी, बखरा अप्पन बाँटि लिय.

2 comments:

  1. आह! बहुत नीक भाव भीजल कविता

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  2. बहुत सुंदर रचना ।
    करवा लेकिन सत्य।

    प्रणाम अहिना लिखैत राहु हमरा सब के आनंद दैत राहु।

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