Sunday, November 8, 2009

कविक लालसा

हमर कविताक पांती पहिल थीक
ज' कही नीक लागल त' आगू बढ़ी
नहि त' छोरब अपन जिद ने कविता लिखब
मुदा चिंता तखन अछि जे की हम करब

किछु काजो करबा में त' नहिए सकी
त सोचलहुँ जे बैसि थोड़े कविते लिखी
कविता लिखब आब भारी त खेल नहि
हमरा कहियो बेसी दिककत त भेल नहि
किछुओ हो दस बीस पचास शब्द ठूसल हो
कविताक अर्थ भले कविता स रूसल हो

हे कविता कतेक लिखब चालीस पचास
आ पृष्ठों बड बेसी त सयक आसपास
आ तै पर ज' आमुख विधायक जी लीखि देता
हमरा प्रशंसा में दू आखर टीपि देता
जे सद्यः सरस्वतीक जिह्वा पर बास छन्हि
मैथिल समाज केर हिनका स आस छन्हि

फेर लक्ष्मीओ के अयबा में कोनो टा भाँगट नहि
जे ओ पढ़त से त' एक्कहि टा मांगत नहि
हे पॉँच सय नहि चारिए सय प्रति जँ बिका जाएत
एहि अदना सन कवि केर त' जीवन उद्धार हैत
टाका जुनि पुछू पाग डोपटा सम्मान भेटत
कवि लोकनिक पांती में आगाँ ई नाम भेटत

तं आज्ञा भेटल हमरा आगाँ बढ़बाक लेल
पब्लिशर तैयार अछि पोथी छपबाक लेल
पोथी केर आउटलुक डिज़ाइनो कमाल अछि
पब्लिशर मुदा एहि चिंते बेहाल अछि

जे लोके नै कीनत त छापियो कs हैत की
घासे ज मित्र तखन घोड़ा फेर खैत की
तें जेबी में टाका ज अछि त तैयार रहू
नीक एक पोथी पढबा केर नियार करू
पोथी सजिल्द कूट लागल नफीस रहत
आ मूल्य सेहो बेसी नहीं चारि सय पचीस रहत

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