Wednesday, December 2, 2009
हेरायल शैशव
Tuesday, December 1, 2009
तू आगू बढ़ शुरुआत त कर.................
आकाश सेहो तू नापि सकै छें, अपना पर विश्वास त' कर
तू आगू बढ़....................
जँ राति भेलई भिनसरो हेतई, ई सत्य थिकै ने मेटा सकै
ई समयचक्र एहिना चलैत अछि, मुदा एकर सम्मान त' कर
तू आगू बढ़.........................
बस व्यर्थे नोर बहौने की? समदाउन उदासी गौने की?
हम गीत विजय केर गायब सदिखन, प्रण ई ल' जीवन में चल
तू आगू बढ़ .............................
भगवानो मदति करथि ओकरे, जे सतत कर्म में लागल हो
फुसिए चिंता त्यजि जग भरि कें, जो कर्तव्यक पालन तू कर
तू आगू बढ़ ................................
किछु काज एहन कर जीवन में, जे मानवजातिक हित में हो
मरियो क' अमर बनल रह्बैं, मनु कल्याणक तू बाट त' धर
तू आगू बढ़...................................
मंत्री उवाच..................
जन्मे सँ बुड़िलेल थिकहुँ की लोक देखि क ' भगल करै छी
देखू हमरा गत दसो वर्ष सँ मंत्री पद पर बैसि रहल छी
जे अबैत अछि सत्ता में हम तकरे पार्टी पैसि रहल छी
शहर राज्य केर किछु रईस में अपन नाम हम देखि रहल छी
फिफ्टी परसेन्टक लगभग त' फंडे में स' चूसि रहल छी
राजनीति में श्रेष्ठ थिकहुँ हम तें अपने स कहल करै छी
जन्मे सँ.....................................................................
समयक बंधन में नहि रहि हम अपन प्रतिष्ठा सतत बढाबी
पैघो सँ' पैघो अफसर कें आँगा-पाँछा अपन घुमाबी
अपने कतबो किछु क' ली धरि नीति केर उपदेश सुनाबी
शिलान्यास दस बीस पचासों क' नेता हम नीक कहबी
नेता केर हो एहन दुर्दशा? तें अपने स कहल करै छी
जन्मे सँ बुड़िलेल ....................................................
जे बाजब से किए करब हम मूलमंत्र बनब' पड़ैत अछि
ठकि फुसिया फेर भोट लेलहुँ ई प्रजातंत्र एहिना चलैत अछि
कतहु कतहु तँ बूथो तक कैप्चर हमरा करब' पड़ैत अछि
साम दाम वा दंड भेद सब विधा अपन लगब' पड़ैत अछि
बड़ सोझ सरल व्यवहार देखै छी, तें अपने स' कहल करै छी
जन्मे सँ..................................................................
आतंकी सबहक विरुद्ध जा अपना आफत किए मोल ली
लूटपाट में अपनहुँ छी तें ओकर पोल हम किए खोलि दी
सबटा बुझितो जनितो ओहि में अपना कें झोंक' पड़ैत अछि
आ राजनीति करबाक जँ इच्छा मानवता छोड़' पड़ैत अछि
गाँधी केर तीनू बानर कें अपन हम आदर्श बुझै छी
जन्मे सँ बुड़िलेल.........................................................
Friday, November 20, 2009
व्यथा
हमर नोरो सुखा गेल कानी कोना ?
हमरा दिन केर इजोतो अन्हारे लगय
हम जे सोनो उठाबी त' माटिए बनय
हमहूँ नचितहुँ कने से जखन मोन हो
हमर घुघरू हेड़ा गेल नाची कोना?
हम कोना........................................
Tuesday, November 17, 2009
कोरोना
सबटा काबिलती केर दाबी ध्वस्त भेल एक्कहि छन मे
सगर विश्व में पसरि गेल अछि रोग आसुरी आइ तेहन
अपनहि शहर बजार लगै छल जेना कोनो हो निर्जन बन
कोरोना केर भय सं दुनिया सुटकि गेल छल आँगन मे
सबटा काबिलती केर दाबी....
लोक डाउन में होइत छल जे चिड़ै चुनमुनी रहितहुँ हम
पाँखि अपन पूरा पसारि आकाश भ्रमण कय सकितहुँ हम
आब सोचै छी कतेक कष्ट पिजड़ाक चिड़ै कें हेतै मन मे
सबटा काबिलती केर दाबी......
जँ भेटितथि भगवान पुछितियनि कोन कर्म के सजा देलहुँ
की बिगाड़ने छलहुँ अहँक जे एहि जाल में फसा देलहुँ
जानी नहि की की देखबा लेल और बचल अछि जीवन मे
सबटा काबिलती केर दाबी....
Friday, November 13, 2009
अंतर्द्वंद
तें अपने अन्तःमन सँ सदिखन जूझि रहल छी
अपने विचार अगले क्षण मिथ्या बुझा रहल अछि
तें हमरा आगाँ पाछाँ नहि सुझा रहल अछि
बैसल छी सोचबा लेल किच्छु नहि फुरा रहल अछि
सबटा विचार मनहिक भीतर घुरघुरा रहल अछि
हम किदन कहाँ छी बाजि रहल से बूझि रहल छी
अपने अन्तःमन................................................
प्रकृति संग मनमानी देखि अचंभित छी हम
प्रकृतिक पलट प्रहार सोचि बड विचलित छी हम
एकसर की क' सकबै तें चुपचाप रहै छी
मानवकृत अत्याचारक सब अभिशाप सहै छी
क्यौ ने सुननिहार अछि व्यर्थे भूकि रहल छी
अपने अन्तःमन............................................
लोकक देखि तमाशा मन अकबका रहल अछि
सम्बंधोक विचार न तें सकपका रहल अछि
नैतिकता केर ह्रास देखि छटपटा रहल अछि
आगाँ केर परिणाम सोचि कपकपा रहल अछि
हम बताह छी वा ओ से नहि बूझि रहल छी
अपने अन्तःमन..........................................
Sunday, November 8, 2009
कविक लालसा
ज' कही नीक लागल त' आगू बढ़ी
नहि त' छोरब अपन जिद ने कविता लिखब
मुदा चिंता तखन अछि जे की हम करब
किछु काजो करबा में त' नहिए सकी
त सोचलहुँ जे बैसि थोड़े कविते लिखी
कविता लिखब आब भारी त खेल नहि
हमरा कहियो बेसी दिककत त भेल नहि
किछुओ हो दस बीस पचास शब्द ठूसल हो
कविताक अर्थ भले कविता स रूसल हो
हे कविता कतेक लिखब चालीस पचास
आ पृष्ठों बड बेसी त सयक आसपास
आ तै पर ज' आमुख विधायक जी लीखि देता
हमरा प्रशंसा में दू आखर टीपि देता
जे सद्यः सरस्वतीक जिह्वा पर बास छन्हि
मैथिल समाज केर हिनका स आस छन्हि
फेर लक्ष्मीओ के अयबा में कोनो टा भाँगट नहि
जे ओ पढ़त से त' एक्कहि टा मांगत नहि
हे पॉँच सय नहि चारिए सय प्रति जँ बिका जाएत
एहि अदना सन कवि केर त' जीवन उद्धार हैत
टाका जुनि पुछू पाग डोपटा सम्मान भेटत
कवि लोकनिक पांती में आगाँ ई नाम भेटत
तं आज्ञा भेटल हमरा आगाँ बढ़बाक लेल
पब्लिशर तैयार अछि पोथी छपबाक लेल
पोथी केर आउटलुक डिज़ाइनो कमाल अछि
पब्लिशर मुदा एहि चिंते बेहाल अछि
जे लोके नै कीनत त छापियो कs हैत की
घासे ज मित्र तखन घोड़ा फेर खैत की
तें जेबी में टाका ज अछि त तैयार रहू
नीक एक पोथी पढबा केर नियार करू
पोथी सजिल्द कूट लागल नफीस रहत
आ मूल्य सेहो बेसी नहीं चारि सय पचीस रहत
Tuesday, October 20, 2009
की प्रगतिशील तखने हम छी?
जँ आन देश केर भाषा केर हम गर्वित भ' क' बाजी
आ अप्पन भाषा केर बिसरी जाई .......................
की प्रगतिशील तखने हम छी?
जँ कर्म कुकर्मक भेद मिटा कत्तौ कखनो हम किछु क' ली
आ अप्पन सदगुण बिसरी जाई...................................
की प्रगतिशील तखने हम छी?
जँ श्रेष्ठहुं के आदर नहि दी
आ संस्कार हम बिसरि जाई..........................................
की प्रगतिशील तखने हम छी?
जँ कपड़ा लत्ता फोलि फालि नँगटे कत्तहु बुलैत रही
आ संस्कृति अप्पन बिसरि जाई............................
जागू जागू हे आर्य लोकनि! एखनो समय अछि बचयबाक
एहि संस्कृति कें,एहि सदगुण के, एहि संस्कार ओ भाषा कें
जकरा बुझय लय अपनयबा लय लोक अबै छथि दूरो सँ
तकरे कोना हम बिसरि जाऊ
ई नहि ई नहि होयत से प्रण ली सब अपना मन में
ई प्रगतिशीलता जँ अपना देशक अस्तित्वे मिटा देत
तँ नहि होयब हम प्रगतिशील
बस होयब सुच्चा राष्ट्रभक्त आ कर्मठ अपना जीवन में
तँ प्रगतिशील मानय पडतै
सब देशहि कें विश्वक समक्ष
गीत एक गायब ओहि दिन हम
प्रगतिशील तखने हम छी जँ
अपन भाषा ध्यान रहय, अप्पन सदगुण कें नहि बिसरी
संस्कार सेहो बस ध्यान रहय
आ अप्पन संस्कृति लेल मन में सब सँ पहिने स्थान रहय
प्रगतिशील तखने हम छी..........................
प्रगतिशील तखने हम छी..........................
दुविधा
किछु गुण चेतन केर पौने छी
आ किछु में एखनो नेने छी
हम चेतन छी की नेने छी..............
ई बयस होइछ सबहिक जीवन केर से पड़ाव
जे सबठां दू टा बाट एक टा नीक तथा दोसर ख़राब
ई प्रश्न सदा मन में रहैछ जे चयन ककर हम कयने छी?
हम चेतन छी की नेने छी..............
ई बयस बहुत सुंदर कहबा लेल होइत अछि
किछु बात चेतनो के बुझी आ नेनपन सेहो रहैत अछि
पर अन्तःपीडा अपन लोक अपने बूझय
ने चेतन आ ने नेने में स्थान अपन हम पौने छी
हम चेतन छी की नेने छी..............
चेतन-नेना, नेना-चेतन केर प्रबल द्वंद
दिन राति किंतु बीतल जाइछ गति मंद मंद
बस एक प्रश्न अपने सब स' पूछय चाही
जे अपनहु सब की एहिना बयस बितौने छी
हम चेतन छी की नेने छी..............
Monday, October 12, 2009
परिवर्तन
आब समूचा दुनिया ई पहिने सँ अछि आगाँ बढि गेल
आई फेर मुनचुन बाबा केर शुरू भेलनि भाषण केर रेल
ओ कहलनि हम गामे सँ दरिभंगा पैरे चलि आबी
भिनसर में सबसँ पहिने प्राती गबैत छलथिन बाबी
आब लोक अछि गुडुकि रहल से सबटा अछि चक्का केर खेल
आ एहि सीडी कैसैट युग में किए प्रतीक्षा भिनसर लेल
आब समूचा दुनिया ई.................................................
पहिने लालटेन वा डिबिये सँ चलि जाइत छल सब काज
पहिने लिखल जाइत छल चिट्ठी से पहुंचै छल मासों बाद
आब मरकरी केर इजोत सँ घर आँगन अछि जगमग भेल
आ एहि टेलीफोनिक युग में अमरीको कोनटे लग भेल
आब समूचा दुनिया ई.................................................
पहिने दीपावली राति में छल लगैत दीपेक कतार
आ फगुआ दिन भीजि जाइत छल रंगहि सँ सब यार भजार
आब दीप केर जगह समूचा झालरि और फटक्का लेल
आ एहि इंटरनेटी युग में खेला लेत फगुआ ईमेल
आब समूचा दुनिया ई.................................................
Saturday, October 10, 2009
हमर दादाजी
जाहि समय में होइत छल हल्ला फसाद आ दंगे